पांजरापोल गौशाला को आत्मनिर्भर बनाने की ओर एक कदम..

Painter: Artist busy on his creative work

Panjrapole-gaushala

देसी गायों के पवित्र गोबर-गौमूत्र पंचगव्य से निर्मित कलाकृतियां 

15 सितम्बर 2024      3.00 PM

भारतीय कृषि का गौपालन से घनिष्ठ संबंध है। वे एक दूसरे के पूरक हैं। एक दूसरे का पोषण करते हैं। हमारे देश की आर्थिक संरचना गौपालन पर निर्भर करती है, क्योंकि यहां अधिकांश लोगों की आजीविका का मुख्य स्त्रोत कृषि है और इसका आधार बैल है, जो हमें गाय से मिलता है। गौपालन हमारी अर्थव्यवस्था का आधार है। गौवंश के बिना कृषि असंभव है। आज के तथाकथित वैज्ञानिक युग में स्वच्छ गौवंश के स्थान पर ट्रेक्टर, रासायनिक खाद, कीटनाशक आदि से खेती की जाने लगी, तो आज इसके भयंकर परिणाम अज्ञात नहीं है। यदि कृषि, भूमि, अनाज आदि को बर्बाद होने से बचाना है, तो प्राकृतिक स्वच्छ गौवंश आधारित कृषि को पुन: अपनाना आवश्यक है। उपयुक्त तथ्यों को ध्यान में रखते हुए गाय को माता माना गया है। 

किसान के बाद गौशालाएं ही भारत में गौवंशों के लिए एक सुरक्षात्मक आश्रय स्थल हैं। गौशाला उन गायों-बछड़ों की रक्षा करती हैं जिन्हें अन्यथा बेरहमी से मार दिया जाता। गौशालाएं आपको इस अनुष्ठान में भाग लेने का अवसर प्रदान करती हैं ताकि पशु अपशिष्ट का उपयोग और पर्यावरण को शुद्घ किया जा सके। गौशालाएं विभिन्न गाय आधारित पंचगव्य उत्पादों को बेचकर पर्यावरण में योगदान दे रही हैं और आत्मनिर्भर बनकर गौशालाओं को एक नया आयाम दे रही हैं।

नागपुर से 42 किलोमीटर दूर काटोल रोड़ पर राऊलगांव डोरली में निराश्रित गौवंश सेवा फाउंडेशन द्वारा संचालित जैन गौशाला भी इन सभी उद्देश्यों की पूर्ति के लिए अपना अहम योगदान दे रही है। जैन गौशाला के संस्थापक आनंद माणकचंद झामड़, सौ. नेहा आनंद झामड़ एवं अध्यक्ष सुंदरलाल सुराना ने बताया कि पांजरापोल जैन गौशाला की स्थापना 15 जनवरी 2019 को हुई थी। श्री घेवरचंद झामड़ एवं स्व. श्री सुगनचंद गेलड़ा (घाटंजी) इसके प्रेरणास्त्रोत और श्रीमती सुशीलादेवी माणकचंद झामड़ मार्गदर्शिका हैं। जीवदया को ध्यान में रखते हुए असहाय, बीमार, अपंग, दुर्बल, दुर्घटनाग्रस्त किसानों द्वारा छोड़ी हुई बिना दूध देने वाली गायों की प्राथमिक चिकित्सा के लिए राऊलगांव में नैसर्गिक, सौंदर्यशील, धार्मिक वातावरण के बीच आधुनिक सुविधाजनक आश्रय स्थान देकर निस्वार्थ भाव से यहां चिकित्सा की जा रही है। दिन प्रति-दिन गौवंशों की संख्या बढ़ रही है और यह छोटा सा पौधा वटवृक्ष बनने की ओर अग्रसर है। गौशाला की 50 किलोमीटर की रेंज में 365 दिन 24 घंटे यह सेवा एंबुलेंस एवं डॉक्टर सहित उपलब्ध है। हेल्पलाइन नं. 8888881428 जीवदया गौसेवा अभियान के तहत घटना स्थल पर जाकर गौवंशों को तत्काल यहां लाया जाता है।

जीवदया के प्रति बढ़ती भावना का परिचायक ही है कि आज गौवंशों की संख्या यहां 450 से भी ऊपर हो गई है। मात्र 6 गायों को कत्लखाने में जाने से बचाकर अभयदान देकर स्व. श्री माणकचंद झामड़ एवं श्रीमती सुशीलादेवी झामड़ ने गौशाला के उपक्रम की नींव रखी थी। पारिवारिक, सामाजिक मित्रों के सहयोग और मार्गदर्शन से यह कारवा दिनोंदिन बड़ी तेजी से आगे बढ़ रहा है। गौवंशों के आश्रय स्थल के लिए लगनेवाली उपयुक्त जमीन गौसेवा हेतु दान देकर झामड़ परिवार ने इस अनूठे उपक्रम की शुरुआत की थी। गौशाला को आत्मनिर्भर बनाने की और एक कदम बढ़ाया गया है। देसी गायों के पवित्र गोबर, गौमूत्र पंचगव्य से निर्मित कलाकृतियां (आर्गेनिक नेच्ाुरल पंचगव्य प्रोडक्ट्स) के लिए मोबाइल नंबर 8888881452, 8888880914 पर संपर्क कर सकते हैं। यह सभी प्रोडक्ट्स बहुत ही सुंदर और आकर्षक हैं। यह सभी कलाकृतियां बहुत ही मुनासिब दाम में उपलब्ध हैं। ग्रामवासियों के लिए आर्थिक स्वावलंबन एवं मतिमंद बच्चों को रोजगार उपलब्ध कराना इसका लक्ष्य है।

गौशाला का प्रतिमाह का खर्च 6 लाख रुपये से भी ज्यादा है, अत: दानदाताओं का सहयोग अपेक्षित है। संस्था में 80 G एवं CSR का भी रजिस्ट्रेशन है, जिसका हम फायदा उठा सकते हैं। आजीवन सदस्यता, एकदिवसीय जीवदया प्रणाली, मासिक नियमित अनुदान प्रणाली, अभयदान, गोद लेना, पशु आहार व्यवस्था में आप भागीदार बनकर इस यज्ञ में आहुति डाल सकते हैं। जन्म दिन, सालगिरह, सगाई, विवाह, गृहप्रवेश, जन्मोत्सव, उद्घाटन, तपस्या, पर्यूषणपर्व, संवत्सरी, स्मृतिदिवस, जयंती, अमावस्या, पूर्णिमा, दीपावली एवं अन्य उत्सवों के अवसर पर दान देकर जीवदया यज्ञ में हाथ बंटा सकते हैं।

अधिक जानकारी के लिए 8888881428, 8888880914 पर संपर्क कर सकते हैं। निराश्रित गौवंश सेवा फाउंडेशन का ऑफिस C/o श्री मोहिनी कलेक्शन, बापूराव लेन, निकालस मंदिर रोड़, इतवारी, नागपुर  में स्थित है।




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